Abhyas, ईश्वर प्राप्ति, उद्देश्य, कथा अमृत, जीवन, दुर्लभ संवाद, मधुसंचय, यौगिक प्रयोग, रामकृष्ण परमहंस, विवेक जागृति, संत वाणी, संस्कार सिंचन, सत्संग, सनातन संस्कृति, साधक, सिद्ध पुरुष, स्वामी विवेकानंद, हमारे आदर्श, Bapuji, Heavenly Satsang, Hindu, Indian Culture, Japa, Kriya Yoga

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद


स्वामी विवेकानंद     :  मैं समय नहीं निकाल पाता | जीवन आपा -धापी से भर गया है |

रामकृष्ण परमहंस   :  गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं | लेकिन उत्पादकता आजाद करती है |

स्वामी विवेकानंद     :  आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?

रामकृष्ण परमहंस   :  जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो | यह इसे जटिल बना देता है | जीवन को सिर्फ जिओ |

स्वामी विवेकानंद     :  फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं ?

रामकृष्ण परमहंस   :  परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है | इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते |

स्वामी विवेकानंद     :  अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं ?

रामकृष्ण परमहंस   :  हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है | सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है | अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं | इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता |

स्वामी विवेकानंद     :  आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है ?

रामकृष्ण परमहंस   :  हां | हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है | पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है |

स्वामी विवेकानंद     :  समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं…

रामकृष्ण परमहंस   :  अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो | अपने भीतर झांको | आखें दृष्टि देती हैं | हृदय राह दिखाता है |

स्वामी विवेकानंद     :  क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है ?

रामकृष्ण परमहंस   :  सफलता वह पैमाना है जो दूसरे लोग तय करते हैं | संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो |

स्वामी विवेकानंद     :  कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है ?

रामकृष्ण परमहंस   :  हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है | जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं |

स्वामी विवेकानंद     :  लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है ?

रामकृष्ण परमहंस   :  जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, “मैं ही क्यों ?” जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, “मैं ही क्यों ?”

स्वामी विवेकानंद     :  मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूँ ?

रामकृष्ण परमहंस   :  बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करो | पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो | और निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो |

स्वामी विवेकानंद     :  एक आखिरी सवाल | कभी-कभी मुझे  लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं |

रामकृष्ण परमहंस   :  कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती | अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो | जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है | यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है | मेरा विश्वास करो – अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है |

Standard
Diwali Special, People's Experience, The Fact

अंधकार की छाया


swami vivekanand

स्वामी विवेकानन्द की तेजस्वी और अद्वितिय प्रतिभा के कारण कुछ लोग ईर्ष्या से जलने लगे। कुछ दुष्टों ने उनके कमरे में एक वेश्या को भेजा।

Ramakrishna

श्री रामकृष्ण परमहंस को भी बदनाम करने के लिए ऐसा ही घृणित प्रयोग किया गया, किन्तु उन वेश्याओं ने तुरन्त ही बाहर निकल कर दुष्टों की बुरी तरह खबर ली और दोनों संत विकास के पथ पर आगे बढ़े।

eknathji2

पैठण के एकनाथ जी महाराज पर भी दुनिया वालों ने बहुत आरोप-प्रत्यारोप गढ़े लेकिन उनकी विलक्षण मानसिकता को तनिक भी आघात न पहुँचा अपितु प्रभुभक्ति में मस्त रहने वाले इन संत ने हँसते-खेलते सब कुछ सह लिया।

sant tukaram

संत तुकाराम महाराज को तो बाल मुंडन करवाकर गधे पर उल्टा बिठाकर जूते और चप्पल का हार पहनाकर पूरे गाँव में घुमाया, बेइज्जती की एवं न कहने योग्य कार्य किया।

rishi dayanand

ऋषि दयानन्द के ओज-तेज को न सहने वालों ने बाईस बार उनको जहर देने का बीभत्स कृत्य किया और अन्ततः वे नराधम इस घोर पातक कर्म में सफल तो हुए लेकिन अपनी सातों पीढ़ियों को नरकगामी बनाने वाले हुए।

हरि गुरु निन्दक दादुर होई।
जन्म सहस्र पाव तन सोई।।

ऐसे दुष्ट दुर्जनों को हजारों जन्म मेंढक की योनि में लेने पड़ते हैं। ऋषि दयानन्द का तो आज भी आदर के साथ स्मरण किया जाता है लेकिन संतजन के वे हत्यारे व पापी निन्दक किन-किन नरकों की पीड़ा सह रहे होंगे यह तो ईश्वर ही जाने।

समाज को गुमराह करने वाले संतद्रोही लोग संतों का ओज, प्रभाव, यश देखकर अकारण जलते पचते रहते हैं क्योंकि उनका स्वभाव ही ऐसा है। जिन्होंने संतों को सुधारने का ठेका ले रखा है उनके जीवन की गहराई में देखोगे तो कितनी दुष्टता भरी हुई है!अन्यथा सुकरात, जीसस, ज्ञानेश्वर, रामकृष्ण, रमण महर्षि, नानक और कबीर जैसे संतों को कलंकित करने का पाप ही वे क्यों मोल लेते? ऐसे लोग उस समय में ही थे ऐसी बात नहीं, आज भी मिला करेंगे।

 

 

Standard