Sant Asharamji Bapu se ek mulakat
एक बार की बात है जब हृदय भावों से भर गया और प्रेम उमड़ पड़ा, मैंने (संत श्री आशाराम जी बापू ने ) गुरुजी (साईं लीलाशाह जी महाराज) के पैर पकड़कर कहा: ‘‘गुरुजी! मुझे कुछ सेवा करने की आज्ञा दीजिये।’’
गुरुजी: ‘‘सेवा करेगा? जो कहूँगा वह करेगा?’’
मैंने कहा: ‘‘हाँ गुरुजी! आज्ञा कीजिये, आज्ञा कीजिये।’’
गुरुजी: ‘‘जो माँगूँ वह देगा?’’
मैंने कहा: ‘‘हाँ गुरुजी! जरूर दूँगा।’’
गुरुजी शांत हो गये। कुछ क्षणों बाद गुरुजी ने पुनः कहा: ‘‘जो माँगूँ वह देगा?’’
मैंने कहा: ‘‘हाँ गुरुजी!’’
गुरुजी: ‘‘तू आत्मज्ञान पाकर मुक्त हो जा और दूसरों को भी मुक्त करते रहना, इतना ही दे दे।’’ सद्गुरु की कितनी महिमावंत दृष्टि होती है! हम लोगों को मन में होता है कि ‘गुरुजी शायद यह न माँग लें, वह न माँग लें…’ अरे, सब कुछ देने के बाद भी अगर सद्गुरु-तत्त्व हजम होता है तो सौदा सस्ता है।
न जाने कितनी बार किन-किन चीजों के लिए हमारा सिर चला गया! एक बार और सही। …और वे सद्गुरु यह पंचभौतिक सिर नहीं लेते, वे तो हमारी मान्यताओं का, कल्पनाओं का सिर ही ले लेते हैं ताकि हम भी परमात्मा के दिव्य आनंद का, प्रेम का, माधुर्य का अनुभव कर सकें।
गुरुजी ने नाम रखा है- ‘आशाराम’। हम आपकी हजार-हजार बातें इसी आश से मानते आये हैं, हजार-हजार अंगड़ाइयाँ इसी आस से सह रहे हैं कि आप भी कभी-न-कभी हमारी बात मान लोगे। और मेरी बात यही है कि तत्त्वमसि- ‘तुम वही हो।’ सदैव रहनेवाला तो एक चैतन्य आत्मा ही है। वही तुम्हारा अपना-आपा है, उसी में जाग जाओ। मेरी यह बात मानने के लिए तुम भी राजी हो जाओ।
पहले मेरे आश्रम में जब लोग आते थे को भक्तों को लगता था कि ‘आहाहा… बापूजी को कितनी मौज है! कितनी फूलमालाएं! लाखों लोगों के सिर झुक रहे हैं… हजारों-हजारों मिठाइयां आ रही हैं… बापूजी को तो मौज होगी!’ ना-ना… इन चीजों के लिए हम बापूजी नहीं हुए हैं, इन चीजों के लिए हम हिमालय का एकांत छोड़कर बस्ती में नहीं आये थे ।
फिर भी तुम्हारा दिल रखने के लिए… तुमको जो आनंद हो रहा था, जो लाभ हो रहा था उसकी अभिव्यक्ति तुम करते थे, जो कुछ तुम देते थे, वह देते-देते तुम अपना ‘अहं’ भी दे डालो इस आशा से हम तुम्हारे फल-फूल आदि स्वीकार करते थे।
तुम मेरे द्वार पर आते हो तो मेरी बात भी तो माननी पड़ेगी। गुरु की बात यही है कि तुम्हारी जो जात-पात है वह हमको दे दो, तुम फलाने नाम के भाई या माई हो वह दे दो और मेरे गुरुदेव का प्रसाद ‘ब्रह्मभाव’ तुम ले लो। फिर देखो, तुम विश्वनियंता के साथ एकाकार होते हो कि नहीं।
जिसको सच्ची प्यास होती है वह प्याऊ खोज ही लेता है, फिर उसके लिए मजहब, मत-पंथ, वाद-सम्प्रदाय नहीं बचता है। प्यासे को पानी चाहिए। ऐसे ही यदि तुम्हें परमात्मा की प्यास है और तुम जिस मजहब, मत-पंथ में हो, उसमें यदि प्यास नहीं बुझती है तो उस बाड़े को तोड़कर किन्हीं ब्रह्मज्ञानी महापुरुष तक पहँच जाओ। शर्त यही है कि प्यास ईमानदारीपूर्ण होनी चाहिए, ईमानदारीपूर्ण पुकार होनी चाहिए।
तुम्हें जितनी प्यास होगी, काम उतना जल्दी होगा। यदि प्यास नहीं होगी तो प्यास जगाने के लिए संतों को परिश्रम करना पड़ेगा और जेल आने की लीला भी करनी पड़ी तो कर ली और संतों का परिश्रम तुम्हारी प्यास जगाने में हो, इसकी अपेक्षा जगी हुई प्यास को तृप्ति प्रदान करने में हो तो काम जल्दी होगा। इसीलिए तुम अपने भीतर झांक-झांककर अपनी प्यास जगाओ ताकि वे ज्ञानामृत पिलाने का काम जल्दी से शुरू कर दें। वक्त बीता जा रहा है। न जाने कब, कहाँ, कौन चल दे कोई पता नहीं।
तुमको शायद लगता होगा कि तुम्हारी उम्र अभी दस साल और शेष है लेकिन मुझे पता नहीं कि कल के दिन मैं जिऊंगा कि नहीं। मुझे इस देह का भरोसा नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि इस देह के द्वारा गुरु का कार्य जितना हो जाय, अच्छा है। गुरु का प्रसाद जितना बंट जाय, अच्छा है और मैं बाँटने को तत्पर भी रहता हूँ।
अभी जेल में हु फिर भी आपके ही हित का सोचता रहता हूँ।
तुम सोचते होगे कि ‘बापू थक गये हैं।’ ना, मैं नहीं थकता हूँ। तुम सोचते होगे कि ‘बापू बीमार हो गए है |” ना, मै बीमार नहीं हूँ | तुम सोचते होगे कि ‘बापू वृद्ध हो गए है |” ना, मै वृद्ध नहीं हुआ हूँ | मैं देखता हूँ कि तुम्हारे अंदर कुछ जगमगा रहा है। मैं निहारता हूँ कि तुम्हारे अंदर ईश्वरीय नूर झलक रहा है। कितनी मुसीबत सहेकर जेल और कोर्ट दर्शन करने आतें हो, कितना मेरी एक जलक पाने को तरसते रहते हो ! मै सब देख रहा हूँ, कौन कितना मेरे लिए तड़प रहा है ! आपकी तड़प को देखकर ही मेरी थकान उतर जाती है। और तुमको श्रद्धा और तत्परता से युक्त पाता हूँ तो मैं ताजा हो जाता हूँ और ताजे-का-ताजा दिखता हूँ… आशाराम (बापूजी) की केवल यही आशा से कि ताजे-में-ताजा जो परमात्मा है, जिसको कभी थकान नहीं लगती है, उस चैतन्यस्वरूप आत्मा में तुम भी जाग जाओ। ॐ ॐ ॐ हरि ॐ ॐ ॐ
कौन कहते हैं भगवान आते नहीं
भक्त मीरा के जैसे बुलाते नहीं।
कौन कहते हैं भगवान सोते नहीं
मां यशोदा के जैसे सुलाते नहीं।
कौन कहते हैं भगवान खाते नहीं।
बेर भक्त शबरी के जैसे खिलाते नही
कौन कहते हैं भगवान सुनते नहीं।
सखा अर्जुन की तरह तुम सुनाते नहीं।
कौन कहते है भगवान दुःख हरते नहीं
बहन द्रोपदी के जैसे बुलाते नहीं।
कौन कहते हैं भगवान प्यार जानते नहीं
गोपियों की तरह तुम नचाते नहीं
कौन कहते है बापू बाहर आतें नहीं ?
सत्-शिष्य की तरह आप पुकारतें नहीं |
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